
मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत हैं
मगर उसने मुझे चाहा बहुत हैं ...
खुदा इस शहर को महसूस रखे
ये बच्चो की तरह हँसता बहुत हैं ....
मैं हर लम्हे में सदियाँ देखता हूँ
तुम्हारे साथ एक लम्हा बहुत हैं ....
मेरा दिल बारिशों में फूल जैसा
ये बच्चा रात में रोता बहुत हैं .....
वो अब लाखों दिलो से खेलता हैं
मुझे पहचान ले इतना बहुत हैं ......
बशीर बद्र ......
nice poetry
ReplyDeletekeep this in process
http://devendrakhare.blogspot.com
क़ाबिले-तारीफ़ है।
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