Friday, December 11, 2009

एक नया शेर


मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत हैं
मगर उसने मुझे चाहा बहुत हैं ...

खुदा इस शहर को महसूस रखे
ये बच्चो की तरह हँसता बहुत हैं ....


मैं हर लम्हे में सदियाँ देखता हूँ
तुम्हारे साथ एक लम्हा बहुत हैं ....

मेरा दिल बारिशों में फूल जैसा
ये बच्चा रात में रोता बहुत हैं .....


वो अब लाखों दिलो से खेलता हैं
मुझे पहचान ले इतना बहुत हैं ......


बशीर बद्र ......

2 comments:

  1. nice poetry
    keep this in process

    http://devendrakhare.blogspot.com

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  2. क़ाबिले-तारीफ़ है।

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