Tuesday, January 5, 2010

कल का दिन

कल का दिन बहुत ही ख़राब गया . सुबह मैं रोज़ की तरह तैयार होकर ऑफिस पंहुचा .4 बजे का जब क्राईम का स्पेशल चला गया तो मुझे भूख लगी . मुझे याद आया की मम्मी ने जाते-जाते मेरे बैग में एक संतरा रख दिया था . मेरा आज फास्ट था तो मैं कुछ और तो खा नहीं सकता तो मैंने सोचा की फिलहाल अपने पेट के चूहों को इसे से शांत कर लिया जाये . मैंने अपने दोस्त प्रभात को कहा की संतरा लेगा उसे संतरे बहुत अच्छे लगते हैं उसने भी हँसते हुए हा कह दिया ..संतरा का दोनों ने मज़ा लिया पर चूहे काफी थे मैंने प्रभात से कहा की चल जूस पीकर आते है . पर तभी मैंने अपनी जेब में देखा की मेरी बाइक के चाबी नहीं थी . मेरा दिमाग ख़राब हो गया चाबी कहा गयी .मैंने ये सूचना प्रभात को दी,वो बिना कुछ ज्यादा सुने एक अच्छे दोस्त की तरह चाबी ढूँढने में लग गया ..मैंने बाइक भी ऑफिस के पीछे एक गली में लगायी हुयी थी .तभी मैं भागा की कही मैंने चाबी बाइक में तो लगी नहीं छोड़ दी ? प्रभात भी मेरे पीछे भाग रहा था , बाइक को देख जान में जान आयी . इन कुछ मिन्टो में मेरे मन में हज़ार ख्याल रहे थे , पर कम से कम बाइक वही थी . पर अफ़सोस की बात ये थी की चाबी बाइक में नहीं लगी हुयी थी ..प्रभात ने अपने कमरे की चाबी निकाली और बाइक का ल़ोक खोलने की कोशिश करने लगा . मुझसे ज्यादा वो चाबी के लिए परेशान था ..शायद जूस पी पाने का गुस्सा निकल रहा था .मैंने उसे रोका की रुक एक तुने बाइक का ल़ोक खोल भी दिया तो ये स्ट्रार्ट कैसे होगी ..हम दोबारा ऑफिस गए और ऊपर से लेकर निचे सारे फ्लोर पर चेक कर लिया पर चाबी नहीं मिली..मैं तब तक समझ चुका था की चाबी नहीं मिलेगी शायद नये साल का तोहफा हैं . घर में मम्मी और पापा की डाट भी मुझे डराने लगी थी तभी मुझे याद आया की आज बाइक के इन्शोरेन्स की आखरी तारिक है ..मुझे लग गया की आज अच्छी तरह बैंड बजना है ..मैंने सबसे पहले सौरव को फ़ोन किया क्योकि बाइक की एक दूसरी चाबी घर पर थी ..उसने फ़ोन उठाया मैंने जैसे ही कहा की सौरव मेरे दोस्त मेरी बाइक की चाबी खो गयी है ,उसने छुटते ही कह दिया प्रणय शॉप पर कोई नहीं है मैं नहीं सकता ..शायद वो पहले ही भाप चुका था की मेरे अगले शब्द क्या होंगे ..मैंने कहा कोई नहीं ..मैंने फिर फोन अपने दुसरे दोस्त जय को मिलाया अबकी बार मैंने पहले ही उससे पूछ लिया की कहा हैं ,..जय ने कहा घर ..मैंने कहा शुक्र है अब एक काम कर जल्दी से मेरे ऑफिस आजा बाइक की चाबी लेकर आजा ..ये सुनते ही उसने कह दिया की मैं तो बस निकल रहा हूँ फरीदाबाद जाना है मम्मी को लेकर .मैं समझ गया कि आज कोई नहीं आयेगा ..हिम्मत कर मैंने मम्मी को फ़ोन किया उन्होंने कहा कि मैं ही घरआकर चाबी ले जाऊ ..मैंने प्रभात को कहा कि इतने तू काम संभाल मैं आता हूँ ..मैंने तभी बस पकड ली ..मैं बार बार सोच रहा था कि बाइक कि चाबी कहा रख दी पर कुछ याद नहीं रहा था ...तभी पापा का फ़ोन आया मुझ लग गया कि मम्मी ने पापा को बता दिया ..मैंने डरते डरते फ़ोन उठाया पर पापा अपना कोई काम बतारहे थे ..बस ने घर से मुझे दूर छोड़ा ..मैं भागता हुआ घर पंहुचा और चाबी लेकर वापसी केलिए बस पकड़ ली ..इन सब आप धापी में रात हो चुकी थी और ठण्ड भी बढ़ गयी थी ..ठंडी ठंडी हवा जाननिकल रही थी ..वाप आते हुयी जैसे तैसे सीट मिल गयी मैंने थोड़ी देर के लिए आँख बंद कर ली .जा आँख खोली तो पता चला कि बस दूसरी तरफ मुढ़ गयी . मैं जल्दबाज़ी में गलत बस में बैठ गया था ..मैंने बस रुकवाई पर तब मैं कम से कम 2 किलोमीटर दूर चुका था..दूर दूर तक कोई रिक्शा भी दिखाई नहीं दे रहाथा ..ठण्ड भी लग रही थी ..कान पर ऐसा लगा रहा था जैसे किसी ने बर्फ रख दी हो ..खैर मैंने पैदल चलना शुरूकिया ..और ये याद करना भी भी शुरू किया कि सुबह किसका चेहरा देख उठा था ..20 मिनट बाद मैं अपनी बाइक के पास पंहुचा उसे स्टार्ट किया और ऑफिस के गेट के आगे खड़ा किया ..टूटे हुए शरीर के साथ ऊपर चढ़ा ..तभी मम्मी का फोन आया कि चाबी मिली ऑफिस में मैंने कहा कि बाइक खड़ी मिल गयी ग़नीमत समझो ....मैं अपना बैग उठाया और सर से जाने का आदेश लिया ..रास्ते में आते वक़्त एक बाइक वाला से टक्कर होते होतेबची बल्कि मेरे साथ ही चल रही बाइक कि उससे टक्कर हो गयी ..मैंने कहा हे भगवान् आज क्या - क्या होना है ..राम राम करते मैं घर पंहुचा ..मम्मी ने खाना तैयार रखा था पर मैं इतना थक चुका था कि बस सीधा अपने कमरे में गया और सो गया .. . ,

No comments:

Post a Comment